कोरोना वायरस (Covid-19) का वह दौर तो सबको याद होगा जब हम सब घरों क़ैद थे। हमारे चारों तरफ भयावा माहौल था। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस माहौल से भी ज्यादा भयानक एक माहौल हो जाएगा । दरअसल कोरोना काल से भी बढ़कर भयावा स्थित देश की ‘सिलिकॉन वैली’ कहे जाने वाले बेंगलुरु शहर की होने वाली है। ऐसा हाल केवल बंगलेरू का ही नहीं, कल आपके भी शहर का हो सकता है।
क्योंकि अगर कोई कहे कि आपके शहर में पानी ही नहीं रहा है तो इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं कि बिना जल के आपका शहर और आपके परिवार का क्या हाल होने वाला है? कुछ ऐसी ही स्थित से आज बंगलेरू का है। भारत की ‘सिलिकॉन वैली’ कहा जाने वाला बंगलेरू शहर बूँद-बूँद जल को तरस रहा है।
कहने को तो इस शहर में 1.4 करोड़ की आबादी के साथ ही वॉलमार्ट, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां हैं लेकिन कोई भी कंपनी पानी का निर्माण नहीं कर सकती है। नहीं किसी के द्वारा किया जा सकता है।
बेंगलुरु को मुख्य रूप से पानी की आपूर्ति दो स्रोत है कावेरी नदी और भूजल। अधिकांश गैर-पीने योग्य उपयोगों के लिए, सीवेज उपचार संयंत्रों द्वारा संसाधित पुनर्नवीनीकरण पानी का उपयोग किया जाता है। पिछले कुछ समय से बारिश नहीं होने के कारण प्राथमिक स्रोत अपनी सीमा तक पहुँच गए हैं। बेंगलुरु को प्रतिदिन 2,600-2,800 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और वर्तमान आपूर्ति आवश्यकता से आधी है। इसका परिणाम शहर के निवासियों के लिए दैनिक संघर्ष है।
जैसे-जैसे बेंगलुरु में जल संकट गहराता जा रहा है, सिलिकॉन वैली के निवासी मानसून तक, कोविड-19 के समान, एक ऑनलाइन मॉडल पर स्विच करने का आह्वान कर रहे हैं। पहले से ही पानी की कमी और उच्च तापमान से जूझ रहे बेंगलुरुवासियों में पानी बचाने और कर्मचारियों और छात्रों पर दबाव कम करने के लिए दूरस्थ कार्य और ऑनलाइन शिक्षा अपनाने का आग्रह किया है।
राज्य सरकार द्वारा 10 फरवरी तक किए गए मौसम आकलन के अनुसार, इस साल गर्मी अधिक होने की आशंका है, जिससे कर्नाटक भर में लगभग 7,082 गांव और बेंगलुरु ज़िले के शहरी क्षेत्र सहित 1,193 वार्ड आने वाले महीनों में पीने के पानी के संकट की चपेट में हैं। बेंगलुरु में नागरिक अधिकारियों ने शहर में भूजल स्रोतों को फिर से भरने के लिए सूखी झीलों को प्रति दिन 1,300 मिलियन लीटर उपचारित पानी से भरने का फैसला किया है, जहां लगभग 50 प्रतिशत बोरवेल सूख गए हैं।
साल 2015 से 2019 तक दक्षिण अफ्रिका का केपटाउन शहर पिछले 400 साल के सबसे विकराल पानी के संकट के लिए वैश्विक सुर्खियों में रहा, यहां तक कि 2018 में शहर पानी विहीन (शून्य जल) के मुहाने तक जा पहुँचा था। आज भारत का सिलिकॉन वेली बेंगलुरु, केपटाउन बनने के कगार तक जा पहुँचा है।
शहर के 13900 बोरवेल में से 6900 के नीचे का पानी खिसक चुका है, बेहद जरुरी इस्तेमाल के अलावा पानी के किसी भी अन्य इस्तेमाल पर 5000 तक के जुर्माने का प्रावधान हो चुका है, जिसमें कार धोना, स्विमिंग पूल और यहाँ तक कि बगीचे की सिंचाई भी शामिल है ।
शहर के पोखर तालाबों पर पाट के बनाये गए आधुनिक समृद्धि के प्रतीक ऊँची-ऊँची चमकती इमारतों के नलके,और शावर सुख चुके है लगभग 65000 आईटी कंपनियों से समृद्ध शहर के कामकाजी युवा अब वर्क फ्रॉम होम मांग रहे है ।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में पूरी दुनिया की 17% आबादी निवास करती है लेकिन उस अनुपात में जब पानी की बात की जाए तो पूरी दुनिया का मात्र 4% ही पानी है।