लखनऊ डेस्क : हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ दिल्ली घने स्मॉग की चादर में ढक जाती है और प्रदूषण आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है।
लेकिन इस साल दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के स्तर ने खतरनाक सीमाएं पार कर लीं हैं, जहरीली हवा का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं होती।
कुछ परिवार अपने बच्चों की सेहत बचाने के लिए शहर छोड़ रहे हैं, तो कुछ के पास यह विकल्प ही नहीं है। जहरीली हवा का यह संकट बच्चों, बुजुर्गों और सामान्य जनजीवन के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
संपन्न परिवार छोड़ रहे हैं दिल्ली
दिल्ली प्रदूषण को लेकर सीएनएन ने हाल में कई स्टोरी को पब्लिश किया। जिसमे 45 वर्षीय अमृता रोशा, दक्षिण दिल्ली की निवासी, ने अपने बच्चों वनाया (4) और अभिराज (9) की बढ़ती श्वसन समस्याओं के कारण शहर छोड़ने का फैसला किया है।
अमृता ने ओमान जाने से पहले बताया, “हमारे पास दिल्ली छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है,” उनके बच्चों को डॉक्टर की नियमित देखभाल, इन्हेलर और स्टेरॉयड जैसी दवाइयों की जरूरत होती है। लेकिन हर परिवार इतना भाग्यशाली नहीं है।
मुस्कान, जो एक झुग्गी बस्ती में रहती हैं, अपने बच्चों के लिए नेबुलाइजर की दवा भी पूरी मात्रा में नहीं दे सकतीं। उनके बच्चे चहत (3) और दिया (1) जन्म के बाद से ही हर सर्दी में श्वसन समस्याओं से जूझते हैं। “हम दवाओं का आधा-आधा डोज देते हैं,” मुस्कान का कहना है वह और उनके पति दिहाड़ी मजदूरी से मुश्किल से गुजारा करते हैं।
दिल्ली की जहरीली हवा बच्चों के लिए जानलेवा बनती जा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री आतिशी ने इसे “चिकित्सा आपातकाल” करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण रोकने के लिए बनाए गए उपायों पर निगरानी शुरू कर दी है।
इनमें वाहनों पर प्रतिबंध, निर्माण कार्य रोकना और सड़कों पर पानी का छिड़काव शामिल हैं। लेकिन इन उपायों के बावजूद, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के अनुसार, नवंबर में लगातार आठ सालों से दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर बना हुआ है।
डॉक्टरों की चेतावनी
रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डॉक्टर मंजींदर सिंह रंधावा ने कहा, “इस साल हमने बहुत छोटे बच्चों को गंभीर स्थिति में अस्थमा के साथ देखा है।” प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभाव बच्चों के श्वसन, हृदय और प्रतिरोधक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
नवंबर के दौरान, दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर 1,750 तक पहुंच गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से 70 गुना अधिक है।
घर छोड़ने की मजबूरी
कुछ परिवार बच्चों की सेहत के लिए दिल्ली छोड़ने पर मजबूर हैं। ऐसी ही एक कहानी दीप्थि रामदास ने अपने बेटे रुद्र (3) की लगातार सांस की समस्याओं के बाद केरल जाने का फैसला किया।
“डॉक्टरों ने कहा कि अगर मैं चाहती हूं कि मेरे बेटे के फेफड़े सही से विकसित हों, तो मुझे दिल्ली छोड़नी होगी,” हालांकि, इससे उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी और अपने पति के साथ लॉन्ग-डिस्टेंस मैरिज करनी पड़ी। दीप्थि ने कहा, “दिल्ली वापस आने का सवाल ही नहीं है।”
झुग्गी में जीवन की कठिनाई
वहीं, झुग्गी में रहने वाले मुस्कान जैसे लोग शहर छोड़ने में असमर्थ हैं। मुस्कान के पड़ोसी दीपक कुमार, जिनके चार बच्चे हैं, ने बताया कि उनकी बेटी कृपा (1) पिछले दो सर्दियों से नेबुलाइजर पर निर्भर है।
“डॉक्टर ने नेबुलाइजर खरीदने को कहा, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं,” दीपक ने कहा। उन्होंने अपनी बेटी के इलाज के लिए 20,000 रुपये का कर्ज ले रखा है। “राजधानी में रहना इतना कठिन नहीं होना चाहिए,”