किसी भी देश के चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी होती है, निष्पक्ष चुनाव करवाना और जानता के विश्वास को संविधान के प्रति मज़बूत बनाये रखना। ताकि जानता का विश्वास लोकतंत्र पर बना रहे।
लेकिन भारत में जिस तरह चुनाव को लेकर माहौल बना हुआ है इससे केवल जानता का विश्वास ही नहीं चुनाव पर कम हो रहा है बल्कि चुनाव आयोग को भी कथित एक पार्टी माना जाने लगा है जो किसी को सपोर्ट कर रहा है।
क्योंकि अभी तक जहां ईवीएम मशीन सवालों के घेरे में थी वहीं अब चुनाव आयोग सवालो के घेरे में है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आवेदन में मतदान प्रतिशत का ख़ुलासा करने में चुनाव आयोग द्वारा दिखाई गई ‘अनुचित देरी’ पर आपत्ति जताई गई है ।
चिका में कहा गया है कि मतदान समाप्ति के तुरंत बाद जारी अस्थायी मतदान प्रतिशत के मुकाबले अंतिम मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में 6% की वृद्धि देखी गई । मतलब यह जितना प्रतिशत चुनाव हुआ है उससे अधिक चुनाव आयोग कथित तौर पर बताता है। अब सवाल है यह बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत किसके लिये है? क्या चुनाव आयोग भी किसी पार्टी को कथित तौर पर सपोर्ट कर रहा है?
क्योंकि मौजूदा लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के आंकड़ों का खुलासा मतदान समाप्ति के 11 दिन बाद और दूसरे चरण का ख़ुलासा मतदान समाप्ति के 4 दिन बाद किया गया था । जबकि इसे उसी दिन चुनाव समाप्ति के बाद कर देना चाहिए।
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है और मामले को छठे चरण के मतदान की पूर्व संध्या 24 मई को सुनवाई के लिए निर्धारित किया है, और आयोग से आंकड़े तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में असमर्थता का कारण बताने को कहा है ।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण द्वारा प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों के लिए मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद, ईसीआई ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुमानित मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी किए, जो पहले चरण में 60% और दूसरे चरण में शाम 7 बजे तक 60.96% थे ।
इसके बाद, 30 अप्रैल को प्रकाशित संशोधित आंकड़ों में दोनों चरणों के लिए कुल मतदान के आंकड़े 66.14% और 66.71% रहे, जो लगभग 6% की वृद्धि दिखाते थे ।
मतदान प्रतिशत आमतौर पर अंतिम मतदान प्रतिशत जारी होने के बाद बढ़ता ही है क्योंकि मतदान दलों को भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण इलाकों में स्थित दूर-दराज के मतदान केंद्रों से लौटने में समय लगता है, जो अन्य चीजों के अलावा मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है ।
डेटा अपडेट करने में देरी किसी निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान के कारण भी हो सकती है, हालांकि, इस बार अंतराल अधिक रहा है ।
अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा, ‘आप किस आधार पर अस्थायी मतदान प्रतिशत का खुलासा करते हैं. क्या यह फॉर्म 17सी पर आधारित है? इसे वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है?’
भूषण ने कहा कि मतदान केंद्र के प्रत्येक मतदान अधिकारी को फॉर्म 17सी भरकर रिटर्निंग अधिकारी को जमा करना आवश्यक होता है । उन्होंने कहा, इस फॉर्म में मतदान के वास्तविक आंकड़े शामिल होते हैं जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा वेबसाइट अपलोड करने की जरूरत होती है।
चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि मतदान पूरा होने के बाद रिटर्निंग अधिकारी पूरे निर्वाचन क्षेत्र से डेटा एकत्र करता है, जिसमें समय लगता है । वहीं कुछ निर्वाचन क्षेत्र दूर-दराज के स्थानों पर हैं, कुछ अन्य निर्वाचन क्षेत्र भी हैं जहां पुनर्मतदान का आदेश दिया गया है।
शर्मा ने कहा, ‘यह आवेदन 9 मई को दायर किया गया है और इसका एक निर्धारित पैटर्न है । इसकी शुरुआत मतदाता सूची और ईवीएम पर सवाल उठाने से हुई और अब मतदान प्रतिशत पर सवाल उठाए जा रहे हैं । यह मुद्दा सिर्फ नए मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करने के लिए है । इस तरह की धारणा मतदान प्रतिशत को प्रभावित करती है.’
बता दें कि एडीआर ने 2019 में ईवीएम पर चिंता जताते हुए एक याचिका दायर की थी, उसमें ही यह आवेदन जोड़ा गया है । एडीआर के आवेदन में मतदान के आंकड़ों का खुलासा करने में ईसीआई द्वारा दिखाई गई ‘अनुचित देरी’ पर आपत्ति जताई गई है क्योंकि पहले चरण के मतदान के आंकड़ों का खुलासा 19 अप्रैल को मतदान समाप्त होने के 11 दिन बाद और दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल को समाप्त होने के 4 दिन बाद किया गया था ।