मध्य प्रदेश सरकार अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के कल्याण के लिए पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित उप-योजना के तहत कुछ धनराशि को इस वर्ष धार्मिक स्थलों, संग्रहालयों के विकास और गौ कल्याण के वित्तपोषण के लिए खर्च किया जा रहा है।
यह जानकारी एचटी और मामले से परिचित सरकारी अधिकारियों द्वारा समीक्षा किए गए दस्तावेजों से सामने आयी है। राज्य वित्त विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हालांकि यह असाधारण है । लेकिन सच्चाई यह है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को भी इस खर्च से लाभ मिलेगा।
राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने इस डायवर्जन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एचटी द्वारा समीक्षा किए गए दस्तावेजों के अनुसार, गाय कल्याण (गौ संवर्धन और पशु संवर्धन) के लिए निर्धारित 252 करोड़ रुपये में से 95.76 करोड़ रुपये एससी/एसटी उप-योजना से आवंटित किए गए हैं। गाय कल्याण निधि पिछले साल के लगभग 90 करोड़ रुपये से बढ़ गई है।
छह धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास के लिए, चालू वित्तीय वर्ष के लिए आवंटित धन का लगभग आधा हिस्सा एससी/एसटी उप-योजना से है। जुलाई में पेश किए गए बजट में सरकार ने श्री देवी महालोक, सलकनपुर, सीहोर, संत श्री रविदास महालोक, सागर, श्री राम राजा महालोक ओरछा, श्री रामचंद्र वनवासी-महालोक, चित्रकूट और ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक के विकास के लिए 109 करोड़ रुपये की घोषणा की।
कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश दूसरा राज्य है जिसने एससी/एसटी उपयोजना से अन्य योजनाओं के लिए धन निकाला है। कर्नाटक ने अपनी कल्याणकारी योजना के लिए उपयोजना से 14,000 करोड़ रुपए लेने का फैसला किया, जिसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा था।
एसटी उपयोजना 1974 में और एससी उपयोजना 1979-80 में संविधान के अनुच्छेद 46 के प्रावधानों को लागू करने के लिए शुरू की गई थी, जो राज्यों को कमजोर वर्गों की शिक्षा और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का ध्यान रखने का प्रावधान करता है। लेकिन राजनैतिक इच्छायें ऐसी नहीं है। उन्हें अधिक कथित कमीशन के लिये इस फण्ड को ऐसी जगह डाइवर्ट करना है जहां से उन्हें कमीशन मिल सके।
आदिवासी विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर हिंदुस्तान को बताया, “धार्मिक गलियारों और संग्रहालय में दुकानें होंगी, जहां एससी/एसटी समेत सभी वर्गों के लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। आदिवासी परंपरा को बढ़ावा देने के लिए गलियारों में कलाकृतियां बनाई जाएंगी। इसके लिए आवंटित बजट का इस्तेमाल किया जाएगा।”
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि एससी/एसटी उपयोजना को दूसरी जगह भेजना केंद्रीय योजना का दुरुपयोग है। तीन राज्यों में आदिवासियों के साथ काम कर चुके आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ विनेश झा ने कहा कि यह उपयोजना के लिए पूर्ववर्ती योजना आयोग द्वारा तय दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
“ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में एससीएसपी (अनुसूचित जाति उपयोजना) और टीएसपी (आदिवासी उपयोजना) के लिए दिशा-निर्देश योजना आयोग द्वारा बनाए गए थे। इसके अनुसार, विभाग को एससीएसपी और टीएसपी के लिए निर्धारित धनराशि को एक अलग छोटे मद में रखना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी अन्य योजना में उसका उपयोग न हो और एससीएसपी और टीएसपी के तहत केवल उन्हीं योजनाओं को शामिल किया जाए जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित व्यक्तियों या परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ सुनिश्चित करती हैं। ये क्षेत्र-उन्मुख योजनाओं के लिए हैं जो सीधे उन बस्तियों/गांवों को लाभान्वित करती हैं जिनमें 40% से अधिक अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की आबादी है,”