लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार के ग्रेटर शारदा सहायक समादेश क्षेत्र विकास प्राधिकारी/परियोजना द्वारा 22 अप्रैल, 2024 पृथ्वी दिवस के अवसर पर ‘प्लैनेट बनाम प्लास्टिक: जल, जंगल और जमीन के साथ सामंजस्य’ विषय पर गोष्ठि ‘ का आयोजन किया गया।
इस आयोजन में उत्तर प्रदेश के 50 से अधिक जिलों के पर्यावरणविद, शिक्षाविद, पदमश्री पुरस्कार विजेता, मीडियाकर्मी एवं सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएंसर शामिल हुए। सम्मेलन का उद्देश्य वर्तमान समय में पर्यावरण में शामिल होते हानिकारक घटकों से लोगो को जागरूक करने से है जिनमे से एक घटक प्लास्टिक भी है।
यूनाइटेड नेशनल के पर्यावरण प्रोग्राम की एक रिपोर्ट पर नज़र डाले तो प्रतिदिन प्लास्टिक से भरे 2,000 ट्रकों के बराबर का कचरा दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। जिसके परिणाम है प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया के सामने एक वैश्विक समस्या है। हर साल 19-23 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिक तंत्र में लीक हो जाता है, जिससे झीलें, नदियाँ और समुद्र प्रदूषित हो जाते है।
इतना नहीं इसी प्लास्टिक के 5 मिलीमीटर से छोटे टुकड़े जिन्हें माइक्रो प्लास्टिक कहा जाता है कुछ और टुकड़े जिन्हें नैनों स्केल पर ही मापा जा सकता है । कुछ टुकड़े तो जल में इस तरह से मिले हुए होते है जिन्हें खुली आँखों से देख पाना मुश्किल है। ये प्लास्टिक के बारीक-महीन कण, हर उस चीज़ में पहुँच रहे हैं जो हम खाते हैं और जिसमें हम साँस लेते हैं।
ऐसा अनुमान है कि इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक व्यक्ति औसतन हर साल 50 हज़ार से ज़्यादा प्लास्टिक कणों का उपभोग करता है, और अगर इसमें साँसों के ज़रिए हमारे भीतर पहुँचने वाले कणों को भी शामिल कर लिया जाए, तो इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है। जलीय जीवों का मांस खाने वालों में प्लास्टिक की मात्रा और बढ़ जाती है।
अकड़े बताते है आज धरती पर रहने वाला हर एक व्यक्ति कम से कम 5 ग्राम यानी एक क्रेडिट या डेबिट कार्ड के भार जितना प्लास्टिक पानी से, खाने से या माइक्रोप्लास्टिक युक्त हवा से अपने शरीर में ले रहा है।पीने का साफ़ पानी हम सभी की बुनियादी ज़रूरतों में से एक है।
आईआईटी पटना के एक शोध में बारिश के पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक कण मिले थे। इसी तरह एक अन्य शोध में पाया गया कि भारत में ताज़ा पानी की नदियों और झीलों तक में माइक्रोप्लास्टिक मिल रहा है।
अमेरिका में साल 2022 में एक पड़ताल की गई थी। इसके मुताबिक़, सीवर की जिस गाद को वहाँ फसलों के लिए खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, उसमें माइक्रोप्लास्टिक होने के कारण 80 हज़ार वर्ग किलोमीटर खेती योग्य ज़मीन दूषित हो गई थी। इस गाद में माइक्रोप्लास्टिक्स के अलावा, कुछ ऐसे केमिकल भी थे, जो कभी विघटित नहीं होते यानी उसी अवस्था में बने रहते हैं।
जबकि ब्रिटेन में कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी ने पाया कि यूरोप में हर साल खेती वाली ज़मीन में खरबों माइक्रोप्लास्टिक कण मिल रहे हैं जो हर निवाले के साथ लोगों के शरीर के अंदर पहुँच रहे हैं। कुछ पौधे ऐसे हैं, जिनमें माइक्रोप्लास्टिक ज़्यादा होता है। दरअसल, कुछ शोध बताते हैं कि जड़ों वाली सब्ज़ियों में माइक्रोप्लास्टिक ज़्यादा पाए जाते हैं।
अब जरा इन अकड़ों पर नज़र डाले तो सामने क्या है प्लास्टिक हर जगह, जल, जंगल, ज़मीन सभी को प्रदूषित कर चुकी है और कर रही है जिसके भविष्य में और भी ख़तरनाख परिणाम सामने आने वाले है। इस प्रोग्राम का उद्देश्य भी इन्ही सभी बिंदुओं से लोगो को जागरूक करने से है कि किस तरह गाँव- गाँव और एक एक लोगो को प्लास्टिक प्रदूषण से जागरूक किया जाए। और पृथ्वी को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त किया जाए।
पहला पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत 22 अप्रैल 1970 को अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने की जिसमें लगभग दो करोड़ अमेरिकियों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में हिस्सा लिया था। तब से हर साल पृथ्वी दिवस का आयोजन एक विशेष थीम के साथ 22 अप्रैल को होता आ रहा है।
इस वर्ष 2024 की थीम ‘गृह बनाम प्लास्टिक‘ है; इस थीम, के साथ पृथ्वी दिवस मनाने का उद्देश्य मानव और ग्रह स्वास्थ्य के लिए प्लास्टिक प्रदूषण के नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
प्रोग्राम की अध्यक्षता करते हुए आईएएस हीरा लाल ने कहा, “इस प्रोग्राम में कम से कम 45 जनपदों से अधिकारी गण आये है । जहां कुल 30 प्रस्ताव रखे गये है, जिनमे ग्रामीण लोगो, किसानों के खेती की सिंचाई से जुड़े मुद्दे है। समस्याओं पर चर्चा हुआ है जिसका निदान निकालने के लिए प्रयासरत है । जल,जंगल और ज़मीन से जुड़ी समस्यों के समाधान के लिए ऐसी उपाय खोजने होंगे की समस्या का समाधान भी हो जाए और पर्यावरण को नुक़सान भी नहीं हो ।”
इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे अधिकारी, स्वंय सहायता समूह, जल एवं जल से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि आदि भाग लिया और पर्यावरण के प्रति विचारों के आदान-प्रदान से समाज को जागरूक करने के क्षेत्र में कार्य करने को कहा है।
सम्मेलन का आयोजन आगा खान फाउंडेशन, वाटरएड, एक्शनएड, सिटी मॉनटेसरी स्कूल सोसाइटी, विलियम जे क्लिंटन फाउंडेशन और इरिगेशन एसोसिशन ऑफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित संगठन द्वारा किया गया तथा इसका समन्वय उत्तर प्रदेश सरकार के ग्रेटर शारदा सहायक समादेश क्षेत्र विकास प्राधिकारी / परियोजना ने किया।