उत्तर प्रदेश सतर्कता विभाग (विजिलेंस डिपार्टमेंट) ने मंगलवार को सरकारी धन में 18 लाख रुपये से अधिक के कथित गबन के मामले में एक पूर्व जिला मजिस्ट्रेट और एक पूर्व मुख्य विकास अधिकारी सहित नौ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
जानकारी है यह मामला लगभग 20 साल बाद प्रकाश में आया है। प्रारंभिक जांच के बाद मिले साक्ष्य के आधार पर मामला दर्ज करने की अनुमति मिली है। पुलिस ने कहा कि प्रारंभिक जांच के दौरान कथित तौर पर यह पाया गया कि काम और धन एक ऐसे एनजीओ को आवंटित किया गया था जिसका पंजीकरण पहले ही रद्द कर दिया गया था ।
पुलिस ने कहा कि इसके अलावा, भौतिक सत्यापन से पता चला कि धन वितरित होने के बावजूद कोई काम नहीं किया गया था।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “आरोपियों में पूर्व जिला मजिस्ट्रेट ओम सिंह देशवाल, जो दिल्ली में रहते हैं । एवं पूर्व मुख्य विकास अधिकारी भूपेन्द्र त्रिपाठी, जो प्रतापगढ़ में रहते हैं शामिल हैं। आज के लगभग 20 वर्ष पहले दोनों कथित अपराध के समय चित्रकूट में तैनात अधिकारी थेएक पुलिस अधिकारी ने कहा।”
अन्य आरोपियों में चित्रकूट में तैनात सरकारी अधिकारी और एक एनजीओ सदस्य भी शामिल हैं।पुलिस के अनुसार, 2012 में, सतर्कता विभाग ने राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें बताया गया था कि कर्वी पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले से संबंधित प्रारंभिक जांच में पता चला था कि एक एनजीओ, जिसका पंजीकरण फर्मों के उप रजिस्ट्रार द्वारा रद्द कर दिया गया था। सोसायटीज एंड चिट फंड (फैजाबाद डिवीजन) को एक सरकारी योजना के तहत इससे अधिक कीमत 2003-04 के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में 18.74 लाख रु.का ठेका मिला था ।
जांच से यह भी पता चला कि एनजीओ अध्यक्ष ने इन अनुबंधों को सुरक्षित करने के लिए जाली दस्तावेज जमा किए थे।अधिकारी ने कहा, “भौतिक सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि एनजीओ को जारी किए गए पैसे के बदले कोई काम नहीं किया गया।”
एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक साजिश आदि सहित आरोपों पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत सतर्कता विभाग के झाँसी सेक्टर में मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भी लागू किया था।