आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर पर अपने बेटे के खिलाफ कथित यौन अपराध के लिए कोर्ट ने मुक़दमा चलाने को कहा है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे को प्राइवेट दिखाना, उसे गंदी फिल्में दिखाना, प्रथम दृष्टया बच्चे का ‘यौन उत्पीड़न’ माना जाएगा।
जस्टिस रवींद्र मैथानी की पीठ ने हरिद्वार के एडिशनल सेशन जज/स्पेशल जज (POCSO) का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। उक्त आदेश में व्यक्ति/याचिकाकर्ता को अपने बेटे का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने के लिए POCSO Act की धारा 11/12 के तहत आरोपों ठहराया गया।
ये घटनाएं तब हुईं, जब प्रोफेसर जर्मनी में काम कर रहे थे और 2015-2017 के बीच जब वे आईआईटी रुड़की में प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे थे। उनकी पत्नी ने उन पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और अपने नाबालिग बेटे को अश्लील सामग्री दिखाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था।
प्रोफेसर के खिलाफ उनकी पत्नी ने लगातार अप्राकृतिक संबंध बनाने का आरोप लगाया। इसके लिए उन्हें हॉस्पिटल में भी भर्ती होने की नौबत आ गई थी। प्रोफेसर की पत्नी ने जर्मनी में नियुक्ति के दौरान दिए गए शारीरिक उत्पीड़न का भी जिक्र किया, जिसके कारण वह अक्टूबर 2013 में भारत लौट आई थी।
उसने दावा किया कि प्रोफेसर का जर्मनी में कई महिलाओं के साथ संबंध था। पत्नी ने आरोप लगाया कि प्रोफेसर ने अपने नवजात बेटे को अनुचित सामग्री दिखाई।
अदालत ने पाया कि प्रोफेसर की कथित हरकतें धारा 375(रेप) आईपीसी के अंतर्गत आती हैं, लेकिन इस धारा के तहत पति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इस प्रकार पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 377 लागू नहीं होगी। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उसकी हरकतें, जैसे खुद को एक्सपोज करना और अपने बच्चे को अनुचित फिल्में दिखाना पोक्सो अधिनियम के तहत अपराध है।